A BRIFE DISCRIPTION ABOUT THE WAYS OF WORK

श्रीमद दंडी स्वामी जोगेंद्र आश्रम जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री स्वामी शिवेंद्र स्वरूप जी महाराज (ऋषिकेश)शंकराचार्य जी की दंडी परंपरा का अनुशरण करते हैं महाराज जी वर्तमान में भगवती भद्रकाली शक्तिपीठ राजलदेसर (चूरू).के पीठाधीश्वर तथा धर्म के प्रचार हेतु श्रीमद् भागवत कथा राम कथा शिव महापुराण एवं देवी भागवत के प्रवक्ता हैं जो समय-समय पर प्रवचन और साधको को उपदेश देते रहते हैं
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महाराज जी का जीवन परिचय

धर्म आध्यात्मिकता की ज्योति ब्रह्मचारी श्री शिवेंद्रस्वरूप जी "स्वामीजी" 'प्रस्तावना' समाज के चहुँमुखी विकास के साथ ही उसमें धर्म व सत्य सनातनता की उपस्थिति अर्थात सामाजिक विकास के क्रम में यदि आध्यात्मिक व धर्म प्रतिरूप उपस्थित हो तो वह समाज निश्चय ही सत्य व परमात्म तत्व को धारण कर विकास के साथ परम्परा व मूल्यों को जीवित रख पाता है। वे सभी समाज भाग्यशाली व धन्य है जिनमें समय समय पर सन्यासियों व योगियों ने अवतरण लिया। 'जीवन परिचय ब्रह्मचारी जी शिवेंद्रस्वरूप जी का जन्म ग्राम राजलदेसर (तहसील रतनगढ़ व जिला चुरु) के परम् सात्विक, धर्म परायण परिवार श्रीमान सुखदेवाराम पारीक व श्रीमती लक्ष्मी देवी पारीक के सुपौत्र व श्रीमान ओम प्रकाश जी व श्रीमती नर्मदा देवी पारीक, तिवाड़ी के सुपुत्र रूप में बालक श्री सुशीलकुमार पारीक [READ MORE] का जन्म ता0 29 जून 1992 तदनुसार आषाढ़ शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत 2047 वार शुक्रवार को उनके ननिहाल में श्रीमान मोहनराम जी व्यास व श्रीमती लक्ष्मी देवी व्यास (ओझाया) ग्राम कीतासर, तहसील डूंगरगढ़, जिला बीकानेर में हुआ। (शिक्षा व व्यवहार में जन्म तिथि 15 जुलाई 1990 अंकित है) 'वैराग्य' बचपन से ही परिवार में धर्म परायणता का प्रभाव विलक्षण रूप में सुशील रूप के बालक सुशील पर पड़ा व राजलदेसर में ही स्थित आश्रम में अनन्त श्री विभूषित श्री मत् परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ श्री मद् दण्डी स्वामी जोगेन्द्राश्रम जी महाराज (पीठाधीश्वर) मनकामेश्वर महादेव गुणेश्वराश्रम मायाकुंड हृषिकेश (उत्तराखंड ) व भगवती भद्रकाली शक्तिपीठ राजलदेसर, चुरू (राजस्थान) का सानिध्य व परम् आशिर्वाद बाल्यावस्था से 5 वर्ष की आयु से ही प्राप्त होने लगा। विद्यालयी शिक्षा कक्षा आंठवी तक ग्राम स्तर पर होने के साथ गुरुजी के पास निरन्तर आना जाना वह उनकी प्रेरणा से वैदिकज्ञान प्राप्ति हेतु वृंदावन जाना और वहाँ से आने के बाद गुरुजी के चरणों में रहकर वेंदात उपनिषदों का अध्ययन करना प्रारम्भ किया जो चलते चलते श्री गुरुदेव के पास ही आप रहने लगे तथा उनके स्नेह आशिर्वाद से 2011 में गुरुजी के द्वारा ही कथा प्रवचन की प्रेरणा लेते हुये पाण्डित्य कर्म और व्यास पीठ पर विराजमान होने लगे। 'दीक्षांत' इसी क्रम में 15 फरवरी, 2013 बंसत पंचमी को माता पिता की आज्ञा से उनकी उपस्थिति में ही प्रयागराज इलाहाबाद महाकुंभ में आपकी ब्रह्मचर्य की दीक्षा सम्पन्न हुई। जिससेपरिवार व समस्त पारीक समाज धन्य धन्य हुआ। आपने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, बनारस से सम्बध्द कुंजबिहारी संस्कृत महाविद्यालय वराहघाट रमणरेती वृंदावन से वरिष्ठ उपाध्याय व आचार्य संस्कृत नव व्याकरण की उपाधि व पुनः पुराण इतिहास से आचार्य उपाधि प्राप्त की, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार से स्नातकोत्तर डिप्लोमा करने के पश्चात बनारस संस्कृत विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त करने हेतु कार्यशील है। शिक्षा के साथ साथ व दीक्षा के अनुरूप विभिन्न तपश्चर्या द्वारा आप निरन्तर आध्यात्मिक मार्ग पर शिखर की ओर अग्रसर है जहाँ समर्थ गुरुदेव के मार्गदर्शन में साधन तपस्या करते हुए दंड सन्यास ग्रहण करेंगे जो शंकराचार्य परम्परा का शिखर तत्व है तथा समस्त सनातनी व पारीक समाज के लिए विलक्षण गर्व व गौरव की अनुभूति होगी । 'आध्यात्म' वर्तमान में आप गंगा के किनारे स्थित मनकामेश्वर महादेव गुणेश्वराश्रम त्रिवेणी घाट, हृषिकेश, उत्तराखंड में ही रहकर अध्यापन में बच्चों को वेद व्याकरण शिक्षा व अपनी धर्म साधना के साथ सम्पूर्ण भारत में धर्म की स्थापना व प्रचार के उद्देश्यों से धार्मिक प्रवचन, श्रीमद्भागवत, शिवपुराण, देवीभागवत, रामकथा आदि करते है। 'समाज का गौरव' पारीक समाज व समस्त विप्र समाज भी परम सौभाग्यशाली है जिसमें समय समय पर इन ऊर्जा स्वरूप सूर्यो का प्रादुर्भाव हुआ है इसी क्रम में वर्तमान में अत्यंत महत्वपूर्ण नाम है, परम् श्रध्देय ब्रह्मचारी जी श्री शिवेंद्रस्वरूप जी महाराज। प्रव्रज्या मार्ग के पथिकों के लिए सामान्यतः समस्त मानव समाज हेतु समभाव ही होता है और वे समदृष्टि से ही सभी को देखते भी है, लेकिन वह भौतिक शरीर जिस समाज में जन्म ले अवतरित हो यह भी एक महत्वपूर्ण विषय है खासकर दण्ड धारण करने की योग्यता में तो जन्म से भी ब्राह्मण होना ही अति आवश्यक है। समाज के नैतिक व धार्मिक आचरण को पुष्ट कर सामाजिक मूल्यों, कुरीतियों के त्याग व आध्यात्मिक लक्ष्यों की पूर्ति में ऐसे महामना व दिव्य स्वरूप का अल्पायु में तेजस समाज व विश्व कल्याण हेतु निरन्तर दिशा व आशिर्वाद प्रदान कर समस्त विप्र समाज सहित पारीक समाज व सनातन संस्कृति के विशाल समाज के आलोक अपनी तपस्या व योगबल से निरंतर करते रहे यह मङ्गल प्रार्थना है। वर्तमान में स्वामी जी की लगभग 250 से अधिक कथाएँ हो चुकी है जिसमें कथा व्यास के रूप में अधिकांश कथाएं श्रीमद्भागवत, रामकथा, वाल्मिकी रामायण, शिवपुराण व अष्टादश पुराण सहित देवीभागवत प्रमुख है जो सम्पूर्ण भारत के विभिन्न भागों में तथा कई प्रमुखतीर्थों पर संपन्न हुई है। स्वामी जी द्वारा कथा में आध्यात्मिक रस व उनकी दिव्य वाणी से धर्म व नैतिकता की स्थापना से भक्ति, सत्संग की विलक्षण अनुभूति द्वारा भक्त व भाविकों में जीवन के वास्तविक लक्ष्य, आंनदबोध व नित्य प्रसन्नता से साक्षात्कार होता है। स्वामीजी का अत्यंत सरल, सहज और मृदु व्यक्तित्व सहित परमसत्ता के प्रति बोध से आपने अल्पायु में ही आध्यात्मिक रूप से उच्च उन्नति प्राप्त की है तथा मां नर्मदा की लगभग चार हजार किलोमीटर की परिक्रमा पैदल ही पूर्ण की। धर्म व आध्यात्म में स्वामीजी सन्यास मार्ग में भी उच्च नवीन शिखर को प्राप्त करेंगे ऐसा स्पष्ट परिलक्षित होता हैं। भगवती सरस्वती पूज्य स्वामी जी के श्री कंठ में विराजित रहे तथा सनातन संस्कृति को आप अपने आध्यात्म व तपोबल से निरंतर पुष्ट करते हुए भक्तों को मुक्ति के प्रकाश से आलोकित करते रहें।[/READ MORE]

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