शरीर के समस्त दोषों को निवृत्ति करने के लिए अर्थात स्थूल को निवारण करने के लिए तन के द्वारा निष्काम भाव से किया जाने वाला विषय सेवा कहलाता है।
मन के समस्त दोषों को दूर करने के लिए अर्थात कारण शरीर से निवृत होने के लिए मन के द्वारा समस्त विषयों को त्यागते हुए विषयों से राग रहित रहते हुए निरंतर ईश्वर का चिंतन करना ही त्याग है
सूक्ष्म की अनुभूति करने के लिए प्राणी मात्र से करुणा का भाव रखते हुए सब में ईश्वर भाव रखना ही प्रेम है ।