पति – पत्नी ? शास्त्रोक्त अर्थ पति – पत्नी /HUSBEND -WIFE ……

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पति – पत्नी ? ” :
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समाज के घटकों में अन्तिम घटक पति – पत्नी है । समाज तब प्रारम्भ होता है जब सबसे पहले पति और पत्नी का निर्माण हो , नहीं तो समाज नहीं बनता । ध्यान से विचार करेंगे इस विषय पर । गृहस्थ शब्द का प्रयोग लोक प्रायः करते हैं , यह गृहस्थ ही समाज का मूल परमाणु अथवा मूल घटक है ।

बृहदारण्यक उपनिषद् में जहाँ सृष्टि का प्रारम्भ बताया , वहाँ बृहदारण्य श्रुति ने यही कहा कि जब उस प्रजापति ने सृष्टि करने का संकल्प लिया तब वह स्वयं बीच से टूट गया और मनु – शतरूपा इन दो रूपों को उसने धारण कर लिया । गृहस्थ मूल घटक है । बहुत से लोग गृहस्थ का मतलब ” घर में रहने वाले ” समझते है । तब वेद को मानने और जानने वाले को बड़ी हँसी आती है क्योंकि घर में तो ब्रह्मचारी भी रहेगा , वह कोई पेड़ के नीचे थोड़े ही रहेगा , एक दो दिन रह जाये , यह दूसरी बात है । घर चाहे पत्ते का बनाओ , जैसे कोल , भील पत्तों के घरों में रहते हैं , तो भी है घर ही । ब्रह्मचारी और वानप्रस्थी भी गृह में रहेगा । संन्यासी भी किसी घर में ही रहेगा । फिर गृहस्थ शब्द का प्रयोग क्यों ?

शास्त्रों में बताया है:

” न गृहमित्याहुः गृहिणी गृहम् उच्यते । “

गृहस्थ शब्द में गृह पद ईंट – पथ्थरों का नाम नहीं है । गृहस्थ में गृह का मतलब गृहिणी अर्थात् पत्नी है । बिना पत्नि के गृहस्थ नहीं होता । इसलिये गृहस्थ गृहिणी के साथ होता है । केवल गृहिणी भी गृहस्थ नहीं , गृहिणी के साथ गृही भी होना पड़ेगा ।

पति और पत्नि का क्या मतलब ? बहुत से लोग समझते है कि बच्चों के प्रति जो दोनों कारण हों , वे पति – पत्नी हो गये । लेकिन शास्त्रों में पति – पत्नी का यह अर्थ नहीं है । ” पत्युर्नो यज्ञसंयोगे ” – पत्नी शब्द के अन्दर जो नकार को यज्ञसंयोग बताता है । अर्थात् ” परमात्म प्राप्ति के लिये हम दोनों मिलकर प्रयत्न करेंगे ” , इस व्रत को लेकर जिन स्त्री – पुरुष ने अपने जीवन का एक उद्देश्य बनाया , वे पति – पत्नी हैं । हम वैदिकों की दृष्टी से चाहे आप एक सौ आठ बच्चे पैदा कर लो , यदि यज्ञ के लिये संयुक्त नहीं हुये तो आप पति – पत्नी नहीं। बच्चे तो पशु – पक्षीयों के भी पैदा हो जाते हैं , उससे उसका नाम पति – पत्नि नहीं हो जाता ।

हमारे आचार्यों ने यहाँ तक विचार किया है कि शूद्रों के अन्दर भी पति – पत्नी शब्द का प्रयोग ठीक है या नहीं ? जो व्यक्ति हमेशा शोक – मोह में पड़ा रहे वह कभी परमात्मा की तरफ नहीं जाता । यह बात याद रखेंगे , बहुत से लोग समझते हैं कि दुःख से मनुष्य परमात्मा की तरफ जाता है । वह दुःख दूर करने के लिये परमात्मा की तरफ जाता है , परमात्मा के लिये नहीं जाता । इसलिये वह दुःख दूर होते ही परमात्मा को भी अलविदा कर देता है । शोक वाला व्यक्ति परमात्मा की तरफ नहीं जाता , क्योंकि वह तो रात – दिन दुःख हटाने की ही सोचता रहता है । उपनिषदोँ में जानश्रुति राजा के कथानक आये हैं । जानश्रुति राजा क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुआ था एक बार रैक्व ने उन्हें शुद्र कहकर सम्बोधित किया । ब्रह्मसूत्र में विचार आया है कि जानश्रुति को शुद्र कैसे कह दिया गया ? ब्रह्मसूत्रकार – भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायन कहते है कि उसको शोक हो गया था । जैसे श्रीमद्भगवद्गीताजी में अर्जुन को भगवान् ने कहा , ” तू हींजड़ा है । ” अर्जुन नपुंसक थोड़े ही था , लेकिन इतनी बड़ी फौज को देखकर बोला ” लड़ाई नहीं करूँगा ” , इसलिये उसके भय और कम्प को देखकर भगवान् ने क्लीव अर्थात् हींजड़ा कह दिया । क्षत्रिय लोग युद्ध प्राप्त होने पर प्रसन्न होते हैं । धर्म , गौ , ब्राह्मण की रक्षा के लिये आज हमारे प्राण जायेंगे इसे सोचकर ही क्षत्रिय प्रसन्न हो जाता है , उसे प्राण जाने की प्रसन्नता होती है । श्रीकृष्ण कहते है – अरे अर्जुन । आज युद्ध के मैदान में तुझे सुख न होकर दुःख हो रहा है तू भी कोई क्षत्रिय है ? इसी प्रकार जानश्रुति को शोक मग्न देखकर रैक्व ने उसे शुद्र कह दिया।

शास्त्र में विचार आया कि शुद्र अर्थात् जो शोक – मोह में पड़ा हुआ है वह परमात्मा के लिये विवाह नहीं करता , अपने शोक को दूर करने के लिये विवाह करता है । शोक कई तरह का होता है । अकेलापन सहन नहीं हुआ तो , या घर में रोटी बनाने वाला नहीं है तो ब्याह कर लेंगे , परमात्म प्राप्ति के लिये नहीं करते । अथवा आजकल के जमाने में कोई लड़की बहुत बढ़िया दहेज लाती है तो ब्याह कर लेते हैं, यह भी धन – प्राप्ति के लिये ही है , परमात्मा प्राप्ति के लिये नहीं । अथवा पद – प्राप्ति के लिये ब्याह कर लेते हैं जब कोई बड़ा अफसर कहता है कि मेरी लड़की से व्याह करोगे तो पद दे दूँगा । कई लोग और भी निम्न होते हैं जो चमड़ी और मांस देखकर ब्याह कर लेते हैं ! आजकल ब्याह के लिये सून्दर चेहरा देखते हैं कि इसकी चमड़ी और मांस कैसा है । विवाह के कई तरह के उद्देश्य हो सकते हैं । बहुत से लोग अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिये भी एक बीबी ले जाते हैं ! कहते भी है कि ” बाहर जाने के लिये एक बीबी ले आयें । एक लड़के ने ब्याह के लिये एक लड़की देखा तो कहा – ” इसे सोशल बनना नहीं आता । ” हम एक बार उन लड़के के घर गये थे , हमने कहा यह बहुत बढ़िया मिठाई और नमकीन बना लेती है . तुम कैसे कहते हो इसे सोशल बनना नहीं आता , यह बात नहीं है, लोगों से बातचीत करना नहीं आता । हमने कहा गजब हो गया , तू लोगों से बात करने के लिये कोई प्राइवेट सेक्रेट्री रख रहा है या घर के अन्दर पत्नी ला रहा है ? तब से हमारी समझ में एक नई बात आई कि बहुत से लोग इसलिये विवाह करते है कि प्राइवेट सेक्रेटरी रखेंगे तो हजार रुपये महीना लगेगा और घर वाली दो सौ रुपये में ही काम चला लेगी ! इस प्रकार भिन्न – भिन्न लोभों से लोग विवाह करते हैं।

शास्त्रकारों ने कहा कि ऐसों के लिये पत्नी शब्द का प्रयोग मत करो , वहाँ ” भार्या ” शब्द का प्रयोग होना चाहिये । जिसका भरण – पोषण करना आपका धर्म हो , वह भार्या है । पत्नी शब्द का प्रयोग वहीं होगा जहाँ परमात्म – प्राप्ति के लिये दोनों का संयोग होता है ।

जिन्होने परमात्म प्राप्ति के लिये विवाह किया ऐसे समाज पुरुष वंदन एवं दर्शन के योग्य है।

नारायण स्मृतिः