।। मित्रता ॥/FRIENDSHIP/SWAMI SHIVENDRA

।। मित्रता ॥

मनुष्य के जीवन की सार्थकता का माप उसके सच्चे मित्रों की संख्या से लगाया जा सकता है.

क्योंकि मित्र वहीं बना सकता है जो अपने को दूसरों के लिए मिटा सकता है।

मिटाने का अर्थ है कि वह अपने को भूलकर दूसरे को खेह,

सहानुभूति दे सकता है, आदर दे सकता है।

मनुष्य यदि अपने को भूलना याद रख ले तो बाकी सब याद रहता है।

जो अपने को भूल जाता है उसे सब याद रखते हैं।

मित्र बनाना और मैत्री को स्थिर रखना बड़े पन-साध्य कार्य हैं।

जीवन की इस अमरबेल को हृदय रस से सींचना पड़ता है।

जो हृदय से देने वाला नहीं होगा वह सच्चे मित्र नहीं बना सकेगा।

वह अपने प्रतिस्पर्थों का हार्दिक अभिनन्दन नहीं कर सकेगा,

अपने विद्वेषी से प्रेम नहीं कर सकेगा।

नारायण स्मृतिः