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: कर्म विज्ञान का बोध: कर्म फल का सिद्धान्त/swami shivendra swroop

कर्म फल का सिद्धान्त अब विचार करना है कर्म फल का सिद्धान्त क्या है? तो आइए विचार प्रारम्भ करते हैं: श्रीमद्भगवद्गीताजी वाले भगवान् श्री वासुदेव कृष्ण कहते हैं- कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्वक्रवा मनीषिणः । जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छत्यनामयम् ॥ अर्थात् क्योंकि समबुद्धि से युक्त ज्ञानी जन कर्मों से उत्पन्न होनेवाले फल को त्यागकर जन्मरूप बन्धन […]

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कर्म विज्ञान का बोध ” प्रतिकार” भाग -6/swami shivendra swroop

प्रतिकर्म जो कर्म आपको आपका (जो आप वास्तव में है। ज्ञान कराएँ, वे पुण्यकर्म है, जो कर्म आपको अपने आपसे दूर ले जाएँ . जिनकी वजह से आप अपने सच्चे स्वरूप को भूल जाएँ, वे पापकर्म है। ऐसा जाने। प्रतिकर्म जब आपका कर्म दूसरों की क्रिया पर निर्भर होता है, तब वह प्रतिकर्म होता है।

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कर्म विज्ञान का बोध -कर्म के विभाग भाग- 5/swamishivendra ji mharaj

कर्म के विभाग कर्म के सिद्धान्त को समझना कठिन है, इसलिए उसे समझाने हेतु विभाजित किया गया है। इस विभाजन से हम अपने कर्मों को जान पाएँगे और कर्मबन्धन से मुक्ति का रास्ता खोल पाएँगे। ” सकर्म निकर्म। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि सकर्म यानी जिस विचार, भाव, वाणी, क्रिया से समाज का

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: कर्म विज्ञान का बोध: पुण्य कर्म भाग- 4/swami shivendra swroop

: कर्म विज्ञान का बोध: पुण्य कर्म भाग- 4 श्रेयान्स्वधर्मी विगुणः परचर्मात्यनुष्ठितात् । स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्विषम् ॥ सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत् । सर्वारम्भा हि दोषेण धूमनाग्निरिवावृत्ताः ॥ ३ श्रीगीताजी- अध्याय 18 प्रलोक संख्या 47, 48) अर्थात् अच्छी तरह आचरण किए हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म श्रेष्ठ है। क्योंकि

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कर्म विज्ञान का बोध: भाग -3/understanding of karma science Part -3

कर्म विज्ञान का बोध: ===(3)=– नारायण। ध्यान दिजीए, शरीर निर्वाह के लिए कर्म करना आवश्यक है, नहीं तो शरीर किसी काम का नहीं रहेगा। किसी ने “पेन’ का इस्तेमाल किया, मगर काम होने के बाद पेन का ढक्कन नहीं लगाया तो उसके द्वारा ढक्कन न लगाने का कर्म हुआ । जिस तरह पेन का ढक्कन

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: कर्म विज्ञान का बोध:कर्म ना करना भी कर्म है/understanding of karma science part -2

कर्म न करना भी कर्म है। इन्सान बाहर से कुछ करते हुए दिखाई देता है तो लोग उसे कर्म कहते है, लेकिन बाहर से कुछ न करना भी कर्म ही है। यह छूटी हुई कड़ी उसे बहुत देर से समझ में आती है। इसलिए कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है। लोग कर्मबन्धन और

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: कर्म विज्ञान का बोध:/understanding of karma science/ swami shivendra

: कर्म विज्ञान का बोध: === (1) === नारायण। आपके जीवन का सम्बन्ध आपके घर परिवार, समाज और देश के साथ है, यह बात आप जानते हैं, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि आपके जीवन का नाता आपके कर्मों के साथ सबसे पहले है? इन्सान के द्वारा सुबह से लेकर रात तक शारीरिक, मानसिक

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पति – पत्नी ? शास्त्रोक्त अर्थ पति – पत्नी /HUSBEND -WIFE ……

O════════Oपति – पत्नी ? ” :O════════O समाज के घटकों में अन्तिम घटक पति – पत्नी है । समाज तब प्रारम्भ होता है जब सबसे पहले पति और पत्नी का निर्माण हो , नहीं तो समाज नहीं बनता । ध्यान से विचार करेंगे इस विषय पर । गृहस्थ शब्द का प्रयोग लोक प्रायः करते हैं ,

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।। मित्रता ॥/FRIENDSHIP/SWAMI SHIVENDRA

।। मित्रता ॥ मनुष्य के जीवन की सार्थकता का माप उसके सच्चे मित्रों की संख्या से लगाया जा सकता है. क्योंकि मित्र वहीं बना सकता है जो अपने को दूसरों के लिए मिटा सकता है। मिटाने का अर्थ है कि वह अपने को भूलकर दूसरे को खेह, सहानुभूति दे सकता है, आदर दे सकता है।

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अध्यात्म से क्या तात्पर्य है ??/spirituality/ swami shivendra swroop

नारायण। अध्यात्म का तात्पर्य है अपने आत्मचेग्र (आत्मा) तत्त्व का अध्ययन करना। बाह्य पदार्थों को परममूल्य न मानकर आत्मा (चेतन) को परममूल्य मानना। यह एक आन्तरिक पात्रा है। अपने निज स्वभाव से परिचित होना। मानव अस्तित्व द्विआपामी है। मनुस्य चेतना से युक्त एक शरीर है। शरीर और चेतना यह हमारे अस्तित्व के दो पक्ष है।

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