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धर्म क्या है/what is religion/by swami shivendra swroop

नारायण। मनुष्य आज अशान्त, विक्षुब्ध एवं तनावपूर्ण स्थिति में है। क्योंकि मनुष्य अपने बौद्धिक, तकनीकी और वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर आर्थिक समृद्धि और भौतिक सुख सुविधाओं से सम्पन्नता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने के लिए अग्रसर है तथापि धार्मिक और अध्यात्मिक दृष्टि से वह उतना ही विपन्न है। आधुनिक दूरसंचार एवं इलेक्ट्रोनिक तकनीकी साधनों […]

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घृणा व द्वेष क्यों? घृणा व द्वेष फैलाने वाले सारे मत और विचार…. असत्य और अन्धकार फैलाते हैं …../SWAMI SHIVENDRA SWROOP

क्या हमें दूसरों से घृणा सिर्फ इसीलिए करनी चाहिए कि दूसरे हमारे विचारों को नहीं मानते, या दूसरे हमारे मत, पंथ या मज़हब के नहीं है? यदि हमारे मन में किसी के भी प्रति ज़रा सी भी घृणा या द्वेष है तो हम स्वयं के लिए अंधकारमय लोकों की यानि घोर नर्क की सृष्टि कर

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ध्यान अन्मोल है/importance of meditation /swami shivendra swroop

ध्यान अन्मोल है जब हम किसी से प्रश्न करते हैं कि जीवन कैसा चल रहा है तो केवल दुःख भरी कथाएँ ही सुनने को मिलती हैं। इसका कारण क्या है? बिना सोची-समझी आसक्ति ही हमारे जीवन में दुःख को निमंत्रित करती है। क्या हमें इससे कुछ सार्थक भी प्राप्त होता है? अपने परिवार के सदस्यों

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“गुरु और शास्त्र ।”/guru or shastra/by shivendra swroop

“गुरु और शास्त्र ।” नारायण। शास्त्र तो अनादि काल से मौजूद है, वह हमारा कल्याण कहाँ कर पाया। विचार करने पर पता लगता है कि हमें सद्‌गुरू मिले तभी हमारा कल्याण हुआ, अतः वे ही प्रधान हेतु हैं। सूर्य कमल को खिला तो देता है पर तभी जब कमल जल में हो , बाहर पड़े

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गुरु पूजा/guru pooja by swami shivendra swroop

गुरु पूजा के बारे में मेरे विचार….. मेरे विचार पूर्ण रूप से गहन ध्यान साधना में हुई मेरी निजी अनुभूतियों पर आधारित है, किसी की नक़ल नहीं है। साधनाकाल के आरम्भ में गुरु और में दोनों ही पृथक पृथक थे। पर जैसे जैसे ध्यान साधना का अभ्यास बढ़ता गया मैनें पाया कि गुरु कोई देह

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षटतिला एकादशी व्रत कथा /Ekadashi vart katha/6 feb.2024/swami shivendra

भविष्योत्तर पुराणमें भगवान् श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर महाराज के संवाद में षट्तिला एकादशी महात्म्य का वर्णन है । युधिष्ठिरने पूछा, “हे जगन्नाथ ! हे श्रीकृष्ण ! हे आदिदेव ! हे जगत्पते ! माघ मास के कृष्ण पक्षमें कौनसी एकादशी आती है? उसे किस प्रकार करना चाहिए ? उसका फल क्या होता है ? हे महाप्राज्ञ !

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